रविवार, 15 मई 2016

मंजूर बंधन न होगा

 

मंजूर बंधन न होगा - विनोद ‘व्याकुल’----------------------------------------


उस्ताद ने एक दिन बस लपक ही लिया


बचने की न थी सूरत.. थूक गटक लिया


बोले-... मियाँ क्या ऊटपटांग लिखते हो


बहर का पता नहीं ....शायरी लिखते हो


बकवास इतना ..तुम ये जो लिख रहे हो


फ़कत शायरी की ...तौहीन कर रहे हो


बमुश्किल हिम्मत ........जरा जुटाई मैंने


अदब से अपनी .........नज़र उठाई मैंने


मैंने कहा-....... उस्ताद गलती माफ़ हो


शागिर्द के सिर पर ....हुजूर का हाथ हो


कोई गुस्ताख़ी .............मैंने की नहीं है

 
महसूस की जो ..बस बात वही लिखी है


दिल की बात कहने का भी ..कायदा है


बयां एहसास ना हो ......क्या फायदा है


निकलते हैं दिल से अल्फ़ाज ..काफ़ी है


पढ़ने वाला समझ ले ......यही काफी है


लफ्जों को मेरे ...........बाँधना चाहते हैं


क़ायदा अब मुझे .....सिखाना चाहते हैं


गुस्ताख़ी माफ हो ....ये मुझ से न होगा


लिखेगा ‘व्याकुल’ ..मंजूर बंधन न होगा

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