रविवार, 22 मई 2016

भ्रष्टाचार - स्वरूप और व्यापकता

आज चारों तरफ भ्रष्टाचार शब्द का प्रयोग देखने को मिल रहा है। हर एक तपाक से दूसरे पर भ्रष्टाचारी होने का आरोप मढ़ देता है। मैंने सोचा है कि भ्रष्टाचार की पड़ताल की जाए। समाज में इसकी जड़ों की गहराई को मापा जाए और देखा जाए कि क्या हम लोग जो किसी पर भी आसानी से भ्रष्टाचारी का लेबल चस्पा कर देते हैं, कहीं खुद तो जाने-अनजाने अपने जीवन में भ्रष्टाचार नहीं कर रहे हैं।


अपने इस प्रयास में मैंने पाया है कि भ्रष्टाचार की व्यापकता को जानने से पहले उसके अर्थ और स्वरूप को समझना जरूरी है। यह शब्द दो स्वतंत्र शब्दों की संधि से बना है- भ्रष्ट + आचार = भ्रष्टाचार। अर्थात भ्रष्ट आचरण, व्यवहार या कार्य। अपने किसी लाभ के लिए मानक व्यवहार, जो नैतिक, धार्मिक, सामाजिक, कानूनी आदि किसी भी श्रेणी का हो सकता है, से इतर व्यवहार को भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखा जा सकता है।

अपने परिवेश में ताक-झांक करके मुझे यह एहसास हुआ कि नैतिक रूप से गलत कामों की शुरुआत तो हमारे घरों से ही हो जाती है। बच्चा जन्म के बाद जब इस दुनिया से परिचित हो रहा होता है, परिवेश को समझने की कोशिश कर रहा होता है, उस समय वह अपने परिवार में, अपने आस-पास होने वाले क्रिया-कलापों का बहुत ही कुतूहल और तल्लीनता से अवलोकन करता है। जब बच्चे का अबोध मस्तिष्क अपने आस-पास दुहरे व्यवहार देखता है तो नैतिक मानकों के संबंध में वह उलझ कर  रह जाता है। नैतिकता उसके बाल मन में किसी महत्वपूर्ण विषय के रूप में अपना स्थान नहीं बना पाती है। 

अतः, घर ही वह पहली पाठशाला है जिसके माध्यम से बच्चे का इस दुनिया से परिचय होता है। यदि उसे अच्छे संस्कार मिलने हैं तो घर से ही मिलेंगे और यदि अनैतिकता का पाठ सीखने को मिलता है तो उसकी नींव भी घर पर ही रखी जाएगी। अपने इस प्रयास में सबसे पहले, मैंने छोटे-छोटे उद्धरणों के माध्यम से मैंने यह जानने की कोशिश की है कि छोटे बच्चों पर माता-पिता या किसी अन्य रिश्तेदार के दुहरे व्यवहार का क्या असर होता है।

आजकल बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने भ्रष्टाचार की मात्रा को लेकर छोटे भ्रष्टाचारों को अनदेखा करना और केवल बड़े-बड़े भ्रष्टाचारों को ही भ्रष्टाचार मानना शुरू कर दिया है। इस प्रकार एक सीमा तक भ्रष्टाचार को मान्यता देने का प्रयास किया जा रहा है। वास्तव में भ्रष्ट आचरण नहीं भ्रष्ट आचरण करने की नीयत पर प्रश्न उठना चाहिए। भ्रष्टाचार छोटा हो या बड़ा, अगर नीयत साफ नहीं है तो वह भ्रष्टाचार ही रहेगा। भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने से पहले स्वयं के भीतर झाँक कर देखने की जरूरत हैे कि क्या हमारे सभी आचरण भ्रष्टाचार से मुक्त हैं?


हमारा भ्रष्टाचार - (1)
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6 वर्षीया गुड़िया (मम्मी से): मम्मी, फ्रिज में एक एक ऐपल रखा है, मैं ले लूँ क्या?
मम्मी: अरे नहीं गुड़िया, उसको हाथ मत लगाना। थोड़ी देर में भैया स्कूल से थका हुआ आएगा, उसके लिए रखा है।
और, नन्हीं सी गुड़िया सोच रही है....मम्मी भैया को ही रोजाना ऐपल दे देती है और मुझे मना कर देती है....क्यों? क्या मैं उनकी बेटी नहीं हूँ?



हमारा भ्रष्टाचार - (2)


चिंटू की मां गणित की टीचर से - मैडम, बहुत दिन हो गए, आप घर नहीं आईं। इस रविवार को आप क्या कर रही हैं?
मैडम- ऐसा कुछ खास नहीं।
चिंटू की मां- तो फिर आप अपने पतिदेव के साथ इस रविवार को खाने पर आइए ना!
मैडम- अरे, आप तकल्लुफ मत करिए।
चिंटू की मां- नहीं, नहीं, इस बार तो आपको आना ही पड़ेगा। और, हाँ पिछली बार चिंटू के गणित में नंबर कम रह गए थे। इस बार जरा ध्यान रखिएगा। चलती हूँ, याद रखिएगा रविवार को शाम को आप आ रही हैं।





हमारा भ्रष्टाचार -- (3)
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अंकुश कभी भी स्वयं गृहकार्य पूर्ण नहीं कर पता था। कभी उसकी मम्मी तो कभी उसकी बड़ी बहन उसका गृहकार्य करके देती थी। दोनों की लिखाई भी अलग-अलग थी। अंकुश की ही कक्षा में पल्लवी नाम की एक छात्रा थी जो हमेशा स्वयं अपना गृहकार्य करती थी और बड़े ही सुडौल अक्षर लिखती थी। इसलिए गृहकार्य मूल्यांकन में हर साल पल्लवी को ही सबसे अधिक अंक मिलते थे।
फरवरी का महीना था, अगले दिन सभी छात्रों को अपने गृहकार्य की कॉपियाँ जमा करानी थी।
स्कूल में 
जैसे ही मध्यांतर की घंटी बजी, सब बच्चे कक्षा से बाहर की ओर भागे। अंकुश ने देखा कि पल्लवी ठीक से अपना बस्ता बंद कर के नहीं गई थी और कक्षा में उसके सिवा कोई और नहीं था। उसने लपक कर पल्लवी के बस्ते से गृहकार्य की दो कॉपियाँ निकाल ली और जल्दी से अपने बस्ते में रख कर कक्षा से बाहर चला गया।

घर आकर मां से बोला- मां इस बार देखना पल्लवी को गृहकार्य में सबसे ज्यादा अंक नहीं मिलेंगे। ये देखो!
मां ने कहा- ये क्या हैं? किसकी कॉपिया हैं?
अंकुश- मां ये पल्लवी की गृहकार्य की कॉपियां हैं। वह कल इन्हें जमा नहीं कर सकेगी और उसे अंक भी नहीं मिलेंगे।
मां - वो तो ठीक है बेटा, लेकिन अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो बहुत नाराज होंगे। ऐसा कर, ये कॉपियाँ मुझे दे दे, मैं बक्से में छुपा कर रख देती हूँ।

हमारा भ्रष्टाचार - (4)
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संजना ने देखा कि पतिदेव की टीवी देखते-देखते आँख लग गई है। वह जल्दी से बगल के कमरे में गई और खूँटी पर टंगी पति की पैंट की जेब से उनका पर्स निकाल लिया। जैसे ही संजना ने पर्स में से 500 का एक नोट अपनी उंगलियों से बाहर निकाला, पीछे से उनकी 7 वर्षीया बेटी सुजला बोल उठी- हाय, ममा! ये तो चोरी हुई ना? संजना पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया हो। फइर संभल कर बोली- चुप कर। यह चोरी कैसे हो गई, भला? मुझे घर के काम के लिए जब भी पैसों की जरूरत होती है, तुम्हारे पापा से ही तो लेती हूँ। तू तो रानी बेटी है। अच्छा, वो कल तू वो कौन सी ड्रेस लाने के लिए कह रही थी? मैं आज ही तुझे वह ड्रेस दिला कर लाऊँगी। बस, तू अपने पापा से इन पैसों के बारे में कुछ मत कहना।
मासूम सुजला ने सहमति में सिर हिला दिया। सुजला का भोला मन समझ नहीं पा रहा था, कि पैसे घर खर्च के लिए चाहिए थे, तो ममा ने पापा से मांग कर क्यों नहीं लिए? बिना बताए लेना तो चोरी ही है!

हमारा भ्रष्टाचार -- (5)
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हमारे पड़ोस में शुक्ला जी रहते हैं। याद आया, संजय शुक्ला नाम है उनका। कोई 35 वर्ष की उम्र होगी। उनके एक ही बच्चा है, राहुल जिसे वे लोग शहर के एक महंगे स्कूल में पढ़ा रहे हैं। शुक्ला जी किसी निजी कंपनी में नौकरी करते हैं, अब तक चार कंपनियाँ बदल चुके हैं, लेकिन अभी भी आय से संतुष्ट नहीं है। कुछ दिन से एक राजनीतिक दल की गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। उन्हें लगने लगा है कि एक बार राजनीति में पहचान बन गई तो भविष्य संवर जाएगा।
सुबह का वक्त था। शुक्ला जी तैयार हो रहे थे बाहर जाने के लिए। उधर टीवी पर समाचार आ रहे थे। समाचारों में कहा गया कि राष्ट्रीय जनवादी पार्टी ने आज शहर में भ्रष्टाचार के विरोध में रैली निकालने का नोटिस दिया है। शहर में सुरक्षा व्यवस्था के कड़े इंतजाम किए गए हैं।
राहुल ने शुक्ला जी से पूछा- पापा, ये भ्रष्टाचार क्या होता है और ये लोग इसका विरोध क्यों कर रहे हैं?
शुक्ला जी ने जवाब दिया- बेटा, भ्रष्टाचार का मतलब होता है किसी भी तरह का गलत काम। इसमें अपने फायदे के लिए झूठ बोलना, बेईमानी करना, किसी को धोखा देना, अपना काम करवाने के लिए किसी को पैसों का लालच देना जैसा हर गलत काम शामिल होता है।
राहुल ने आगे पूछा- लोग गलत काम करते ही क्यों हैं?
शुक्ला जी ने घड़ी देखी, समय हो चुका था। इसलिए राहुल से कहा कि अभी तो देर हो रही है शाम को आकर समझाएँगे। चलते-चलते पत्नी को आवाजी दी- सुनती हो,
मैं भ्रष्टाचार विरोधी रैली में जा रहा हूँ। कंपनी से अगर फोन आए तो कह देना कि गाँव से हमारे रिश्तेदार इलाज के लिए आ गए थे, उन्हें दिखाने अस्पताल गए हैं।
मासूम राहुल का दिमाग चक्कर खा रहा था। अभी पापा ने बताया था कि झूठ बोलना भी भ्रष्टाचार में शामिल होता है। फिर पापा ने मम्मी से झूठ बोलने को क्यों कहा?
                                                                                                                                                                                                                                                                         क्रमशः
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