रविवार, 15 मई 2016

हिसाब जिंदगी का




हिसाब जिंदगी का

 

हिसाब जिंदगी का .....कभी भी समझ न आया


जोड़ना चाहा जब ............नतीजा बाकी आया


गणित में होते होंगे ,,,,,,,,.....,,,दो जमा दो चार


हमने तो कभी तीन ...........कभी पाँच ही पाया


रिश्तों का जब .........प्यार से गुणा करना चाहा


बंट गया भाग में ....,,,,,..और शेष सिफर आया


कलन अवकलन फलन कुछ भी सही नहीं हुआ


चर अचर हो गए ........अचर को गतिमान पाया


क्रिया की प्रतिक्रिया का ....वो नियम न्यूटन का


गलत निकला बदले प्यार के .......प्यार न पाया


-विनोद ‘व्याकुल’

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