रविवार, 15 मई 2016

आशु कविताएँ

 

 

कुछ खोट तो जरूर है

समझाओगे जो मान लेगी जनता मजबूर है
नीयत पे तुम्हारी मगर सब को ही शक जरूर है
कितने जुमले, कितने झांसे कितने वादे किए
सब के सब झूठे निकले कहीं तो खोट जरूर है
-विनोद ‘व्याकुल’

लौटा दे तू जो भी लिया है


दिवस के जैसे चार पहर होते हैं
जिंदगी के भी चार पहर होते हैं
दो पहर तो जीवन के बीत चुके हैं
तीसरा पहर है ....साये से झुके हैं 
चौथा पहर वो चिर निद्रा का होगा
पड़ाव अंतिम वो जिंदगी का होगा 
गणित जिंदगी का समझ न आया
सोच रहा हूँ क्या खोया क्या पाया 
दिया कम जमाने से ज्यादा लिया है
‘व्याकुल’ लौटा दे तू जो भी लिया है
-विनोद ‘व्याकुल’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें