रविवार, 15 मई 2016

लघु कथा - उपहार

 


उपहार


15 मार्च - फिर एक बार जन्मदिन की सुबह आई थी। बहुत लंबा समय गुजर चुका है, जब कभी 15 मार्च का सलिल के जीवन में कोई महत्व हुआ करता था; करीब बीस वर्ष तो हो गए होंगे। इसे याद करने के लिए वह अपने दिमाग पर जोर नहीं डालना चाहता था कि आखिरी बार कब उसे जन्मदिन का कोई उपहार मिला था।
उस निर्जन सुबह जब उसकी आँख खुली, बीते पूरे साल की तरह उसे आज के दिन से भी किसी अप्रत्याशित चीज की उम्मीद नहीं थी। अपनों से दूर, इस एकाकी प्रवास में उसे किसी उपहार की प्रतीक्षा भी नहीं थी। किसी अपने का चेहरा देखे एक अरसा हो गया था। फिर भी उसका मन आज कुछ उदास था।
प्रवास के दौरान बने मित्रों में से किसी के आने की भी उसे कोई उम्मीद नहीं थी।
जब वह सोफे पर अधलेटा हुआ अपने एकाकीपन और अपनों से दूर होने के एहसास को मन से निकाल देने का प्रयास कर रहा था, तभी उसका पालतू कुत्ता उछल कर उसकी गोद में आ बैठा। उसने अपनी गहरी काली-भूरी आँखों से आत्मीयता से सलिल के चेहरे को देखा और बार-बार अपनी जीभ से उसके चेहरे को चाटने लगा। उस बेजुबान के सच्चे, निश्छल प्रेम के इस इज़हार को देख कर सलिल की आँखों से अनायास आँसू टपकने लगे। उसकी छाती भर आई और मन हल्का हो कर जैसे उड़ने लगा।
एक बेजुबान ने अपनी मासूम हरकत से उसे दिखा दिया था कि यही वह उपहार था जिसकी उसे प्रतीक्षा थी लेकिन कोई अनुमान नहीं था।

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2 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार लोगों को अंदाजा नहीं होता कि उन्हें चाहिए क्या ? उपहार कोई वस्तु न होकर भाव होती है ये बड़े होने पर ही पता चलता है... बचपन में शायद वस्तु ही उपहार का अर्थ होता है..

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  2. बहुत सुन्दर कथा शैली...! आज हर कोई सलिल की तरह हो गया है। उसे पता ही नहीं कि वह क्या चाहता है। बस प्रेम के उस चार पल को जीकर ही उसकी सारी इच्छाएँ ख़त्म हो जाती है और उसे जिंदगी का मतलब समझ में आने लगता है।
    ... एक उद्देश्यपरक कहानी !

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