रविवार, 15 सितंबर 2013

पितृसत्तात्मक सोच की पराकाष्ठा और मीडिया द्वारा उसका प्रचार

“अगर मेरी बेटी शादी से पहले किसी से संबंध बनाती या अपनी नैतिकता को भूल कर किसी के साथ रात को पिक्चर देखने जाती तो मैं उसे अपने फार्म हाउस ले जाकर, अपने परिवार के सामने पेट्रोल डाल कर आग लगा देता” -ए. पी. सिंह,  दिल्ली गैंग रेप के आरोपियों का वकील।

एक बात समझ में नहीं आ रही है कि दुष्कर्म के आरोपियों के वकील द्वारा बुर्जुआ मानसिकता का एक बयान दिया गया, जो निश्चय ही धिक्कार के योग्य है, लेकिन मीडिया द्वारा जिस प्रकार उस को अपने स्टूडियो में बुला कर लगातार इस पर चर्चा की जा रही है, उससे तो उसके विचारों को व्यापक प्रचार मिल रहा है। सोशल मीडिया पर भी उसे लेकर निरंतर पोस्ट लिखे जा रहे हैं। यह एक सच्चाई है कि दुनिया भर में समाज पुरुषसत्तात्मक हैं। भारत में भी शिक्षा के प्रसार और वैश्वीकरण के संपर्क के परिणामस्वरूप लोगों की सोच में धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है। महिलाओं के एक स्वतंत्र व्यक्तित्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है। लेकिन अभी भी समाज में तीन स्पष्ट विभाजन नजर आते हैं। एक जो पूरी तरह से नारी की स्वतंत्रता के हामी हैं और दूसरे जो पुरानी सोच के दायरे से नहीं निकल पाए हैं। इन दोनों वर्गों की संख्या ज्यादा बड़ी नहीं है। सबसे बड़ी संख्या सोच के संक्रमण से गुजर रहे वर्ग की है जिसका मन पुरातन पुरुषवादी सत्तात्मक समाज के साथ है किंतु उसका तार्किक मस्तिष्क आधुनिक समाज के साथ जाने को प्रेरित करता है। इस बड़े वर्ग के लोगों की कथनी और करनी में भारी अंतर है। ये लोग चूँकि बीच में लटके हैं इस लिए बात तो नारी स्वतंत्रता की करते हैं लेकिन व्यवहार में पुरुषप्रधान, पितृसत्तात्मक आचरण करते हैं। कृपया उस पितृसत्तात्मक सोच वाले वकील पर चर्चा को विराम दें जिससे उसके विचारों का समाज के इस सबसे बड़े, बीच में लटके लोगों पर अधिक प्रभाव न हो।

खुशी के आँसू -एक लघु कथा

आज एक बहुत मार्मिक लघु कथा पढ़ने को मिली.....
(मूल लेखक से साभार) 

इस साल मेरा सात वर्षीय बेटा दूसरी कक्षा मैं प्रवेश पा गया ....क्लास मैं हमेशा से अव्वल आता रहा है !

पिछले दिनों तन्ख्वाह मिली तो मैं उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने के लिए बाज़ार ले गया !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया कि पुराने जूतों को बस थोड़ी सी मरम्मत की जरुरत है, वो अभी इस साल काम दे सकते हैं!

अपने जूतों की बजाये उसने मुझे अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए नया चश्मा बनवाने को कहा !

मैंने सोचा बेटा अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाये उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है !

खैर, मैंने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दूकान पर पहुंचा.....दुकानदार ने बेटे के साइज़ की सफ़ेद शर्ट निकाली ...डाल कर देखने पर शर्ट एक दम फिट थी.....फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!!!

मैंने बेटे से कहा :बेटा ये शर्ट तुम्हे बिलकुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ??/

बेटे ने कहा :पिता जी मुझे शर्ट निक्कर के अंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी ......पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा !

मैं खामोश रहा !!

घर आते वक़्त मैंने बेटे से पूछा :तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ????

बेटे ने कहा :पिता जी मैं अक्सर देखता था कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को छोडकर हमेशा मेरी किताबो और कपड़ो पैर पैसे खर्च कर दिया करते हैं !

गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत इमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग चोर ,कुत्ता, बेईखुशी मान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं.....

जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है.....मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं !

पिता जी मैं चाहता हूँ मुझे कभी जीवन में नए कपडे ,नए जूते मिले या न मिले
लेकिन कोई आपको चोर ,बेईमान, रिश्वतखोर या कुत्ता न कहे !!!!!

मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी, आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर मैं निरुतर था ,,आज मुझे पहली बार मुझे मेरी ईमानदारी का इनाम मिला था !!

आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे....
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हाँ तो दोस्तों.....

कभी इस किस्म की अनुभूति हुई है आपको अपनी जिन्दगी में ?

या फिर कभी इस किस्म की अनुभूति महसूस करना चाहेंगे अपने जीवन में ?

तो अपने बच्चे को एक नया भ्रष्टाचार मुक्त भारत दीजिये....

देखिये, पढ़िए, तुलना कीजिये, अपना दिमाग लगाइए और फिर फैसला कीजिये क्योंकि एक बात हमेशा याद रखिये कि----