रविवार, 15 मई 2016

डर दिल से जाता नहीं

 

 

डर दिल से जाता नहीं - विनोद ‘व्याकुल’


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मानो या न मानो यही सच है यह कोई गल्प नहीं


हम मूर्ख नहीं मजबूर हैं हमारे पास विकल्प नहीं


होता कोई विकल्प तो हम ये परख कर देख लेते


कौन कितना था पानी में हम खुद ही ये देख लेते


हमारी मजबूरी को न समझना तुम चाहत हमारी

 
खाया मीठी बातों से धोखा फिर गई मति हमारी


दिख गए थे पाँव पालने में, उम्मीद पर थी थोड़ी

 
इतनी जल्दी खुल गई कलई आस सब तुमने तोड़ी


अब तो विष बेल फैल गई रास्ता भी सूझता नहीं


चारों तरफ सवाल हैं जवाब ही कोई मिलता नहीं


दुश्वारियाँ भी बढ़ गई हैं जिन को सहा जाता नहीं


पतवार सौंप दी तुमको मगर डर दिल से जाता नहीं

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