जिंदगी भी कैसे कैसे रूप दिखाती है
हँस रहे को रुलाती रोते को हँसाती है
राह दिखाए कभी कभी ये राह भटकाए
जा रहे हों पूरब ये पश्चिम पहुँचाती है
तकदीर के भी देखो खेल कैसे निराले
ये जिंदगी ही बारहा सजा बन जाती है
बिन मांगे सब मिले मांगे से कुछ न मिले
अनदेखा सपना भी ये सच कर दिखाती है
-विनोद ‘व्याकुल'