आज एक अधिकारी की सेवानिवृत्ति के अवसर पर आयोजित एक विदाई समारोह का संचालन करते हुए ये कुछ पंक्तियाँ मैंने पढ़ीं थीं। तात्कालिक रूप से जो विचार मन में आए उन्हें बस शब्दों में उतार दिया-
सेवानिवृत्ति नहीं है जीवन में निष्क्रिय हो जाना
कार्यक्षेत्र ही बदलता है न तुम शिथिल हो जाना
पाया है तुमने इस समाज से अब तक जितना
बन कर वरिष्ठ नागरिक समाज को है लौटाना
चालीस बरस पहले आए थे नौसिखिया बन कर
जा रहे हो आज विभाग के एक विशेषज्ञ बन कर
विभाग को जो दिया उससे अधिक तो पाया होगा
उसी हासिल में से कुछ दे जाओ युवाओं को अगर
उतर जाएगा ऋण, मन भी कुछ हलका हो जाएगा
प्रतिभाओं को तराशने का सिलसिला चल जाएगा
अनुभव खट्टे-मीठे सभी इस दौरान मिले ही होंगे
सोचना दुख तमाम मिले थे अपनी बदनसीबी से
खुशियों के फूल खिले साथियों की खुशनसीबी से
इस मूल मंत्र से ही ये अनुभव सदा यादगार बनेंगे
तनको काम की और मनको विचार की आदत
जो बनी है उसे बनाए रखना, सक्रिय बने रहना
संकट की हर घड़ी में याद हमें सदा करते रहना
भावी जीवन में खुश और स्वस्थ सदा बने रहना
कार्यालय से कर रहे हैं विदा मगर दिल से न जाना
जरूरत जब पड़े, याद जब भी आए तुरंत चले आना
सेवानिवृत्ति नहीं है जीवन में निष्क्रिय हो जाना
कार्यक्षेत्र ही बदलता है न तुम शिथिल हो जाना
पाया है तुमने इस समाज से अब तक जितना
बन कर वरिष्ठ नागरिक समाज को है लौटाना
चालीस बरस पहले आए थे नौसिखिया बन कर
जा रहे हो आज विभाग के एक विशेषज्ञ बन कर
विभाग को जो दिया उससे अधिक तो पाया होगा
उसी हासिल में से कुछ दे जाओ युवाओं को अगर
उतर जाएगा ऋण, मन भी कुछ हलका हो जाएगा
प्रतिभाओं को तराशने का सिलसिला चल जाएगा
अनुभव खट्टे-मीठे सभी इस दौरान मिले ही होंगे
सोचना दुख तमाम मिले थे अपनी बदनसीबी से
खुशियों के फूल खिले साथियों की खुशनसीबी से
इस मूल मंत्र से ही ये अनुभव सदा यादगार बनेंगे
तनको काम की और मनको विचार की आदत
जो बनी है उसे बनाए रखना, सक्रिय बने रहना
संकट की हर घड़ी में याद हमें सदा करते रहना
भावी जीवन में खुश और स्वस्थ सदा बने रहना
कार्यालय से कर रहे हैं विदा मगर दिल से न जाना
जरूरत जब पड़े, याद जब भी आए तुरंत चले आना