रविवार, 26 अक्तूबर 2014

अश्कों के बहाने

तेरी चाहत के नगमे और तराने लिखूँगा

रिफ़ाकत में जुदाई के अफ़साने लिखूँगा




मुझे मालूम है अपनी चाहत का अंजाम

जिद है कि ये जिंद नाम तुम्हारे लिखूँगा


माना के तू है फलक का रोशन माहताब 

उल्फ़त मे तेरी दिनोरात अपने लिखूँगा


शिद्दत मेरी चाहत की तू जान ले आज

दीवान-ए-चाहत खूं से मैं अपने लिखूँगा



दरमियां हमारे फ़ासले इतने हो गए आज

ताउम्र नाकामी के अपनी फसाने लिखूँगा



बेइंतिहा चाहा है तुझे इसी बहाने लिखूँगा


‘व्याकुल’ है मन अश्कों के बहाने लिखूँगा

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

व्यक्ति-पूजा

बहुत अनुभव तो नहीं है लेकिन पठन-पाठन के लगभग 40 वर्ष के अनुभव और परिवेश के प्रेक्षण से यह निष्कर्ष निकाल पाया हूँ कि हम भारतवासी कहीं न कहीं चरमवादी और उपासक हैं। हो सकता है कि इसका कारण यह हो कि हमें आदर्शों की घुट्टी कुछ ज्यादा ही पिलाई जाती हो या फिर हमारे अंदर हीन-भावना अधिक हो।  हम लोग किसी व्यक्ति की महानता का आकलन कभी भी व्यावहारिक पैमाने पर नहीं करते। यदि हम किसी को महान कहते हैं तो फिर उसे इस धरती के एक सामान्य मनुष्य की स्थिति से उठा कर एक आदर्श व्यक्ति की काल्पनिक छवि प्रदान कर देते हैं। इस कार्य में हमारे समाज के सभी लोग शामिल हैं, सामान्य जन के साथ-साथ बुद्धिजीवी भी व्यक्ति-पूजा में पीछे नहीं रहते। काल्पनिक आदर्श छवि प्रदान करने के बाद, यथार्थ से नाता तोड़ कर, हमारा हर प्रयास उस व्यक्ति को एक सर्वगुणसंपन्न, आदर्श व्यक्ति साबित करने के लिए किया जाता है। इस देश के अनेक महापुरुष व्यक्ति-पूजा के शिकार हो चुके हैं। हमारे बीच से यदि कोई ऐसा व्यक्ति निकलता है जो किसी बात में हम से बेहतर या श्रेष्ठतर है, तो हम यह अपेक्षा क्यों करते हैं कि वह सभी बातों में सब लोगों से श्रेष्ठतर होगा। इस देश के सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त वैश्विक व्यक्तित्व, महात्मा गांधी को भी इसका शिकार होना पड़ा। मूल रूप से वे एक इंसान थे, उनमें कुछ चीजें आम लोगों की तुलना में श्रेष्ठतर थीं, उनकी कुछ विशएषताएं थी जिनके कारण उनको दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली। अब लोगों ने उन्हें आदर्शों के सिंहासन पर बिठा दिया। यदि मानव के रूप में जन्म लिया है तो उसमें मानवीय कमजोरियाँ भी तो होंगी। आदर्शों के सिंहासन पर हठात बिठाए गए महात्मा गांधी की प्रचारित विशेषताओं और गुणों से इतर उनके सामान्य मानवीय व्यवहार या प्रवृत्तियों (जिन्हें एक वर्ग द्वारा अनायास या जानबूझ कर छुपाया गया था) को लेकर जब-तब उनके चरित्र-हनन का प्रयास किया जाता रहा है। सार्वजनिक जीवन व्यतीत करने वाली अनेक हस्तियों को हमारी इस प्रवृत्ति के कारण अप्रिय स्थिति का अपने जीवन में या मरणोपरांत सामना करना पड़ा है। नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया, अंबेडकर, पटेल, शास्त्रीजी, अटलजी जैसे नेताओं की लंबी सूची है जिन्हें जननायक के रूप में महिमा-मंडित कर दिया गया और उनके मानवीय पहलुओं को लेकर बाद में आलोचनाएं की गईं। सबसे ताजा उदाहरण हमारे प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी का है। हम लोग भक्ति करते हैं तो चरम स्तर की, एक मानव को उठाकर इतने ऊँचे सिंहासन पर आरूढ़ कर देते हैं कि बाद में उस व्यक्ति के किसी भी सहज मानवीय कृत्य या व्यवहार के लिए उसकी आलोचना करने का अवसर जिस-तिस को मिल जाता है। हम व्ययावहारिक दृष्टिकोण क्यों नहीं अपनाते? विकसित देशों में ऐसा नहीं है। वे लोग अधिक व्यावहारिक हैं, वहाँ इंसान को भगवान नहीं बनाया जाता। दूसरा उदाहरण तमिलनाडु में जयललिता का देखा जा सकता है जिनके जेल जाने के बाद उनके अनुयायियों द्वारा निरंतर विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं। लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि व्यक्ति-पूजा का खामियाजा अंत-पर्यंत उस पूजित व्यक्ति को ही भुगतना पड़ता है।