सोमवार, 4 मई 2015

अब क्यूँ याद आता है - विनोद ‘व्याकुल’

अब क्यूँ याद आता है - विनोद ‘व्याकुल’

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वो तेरा दबे पाँव आना


अचानक सामने आकर


मुझे चकित कर देना


अब क्यूँ याद आता है


वो तेरी उंगलियों का


मेरे बालों से खेलना


मेरे मना करने पर भी


खेलना बंद नहीं करना


अब क्यूँ याद आता है


वो तेरे पल्लू का गिरना


तेरा बेखबर बने रहना


मेरी साँसो का बढ़ जाना


अब क्यूँ याद आता है


वो तेरा बात बात में रूठना


बड़ी अदा से मुँह फेर लेना


मेरा तुझे मनाते रहना


अब क्यूँ याद आता है


वो तेरी अधखुली पलकों में


सपनों के समंंदर का लहराना


उन लहरों की गहराइयों में


मेरा मुझको ही तलाशना


अब क्यूँ याद आता है


और फिर एक दिन,


वो तेरा हमेशा के लिए


मुझे तनहा कर जाना


अपने मुस्तकबिल के लिए


अतीत को पीछे छोड़ जाना


अब क्यूँ याद आता है

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