सोमवार, 4 मई 2015

मित्र, तुम भले से लगते हो

मित्र, तुम भले से लगते हो, 

अपनों से अधिक अपने लगते हो,


अपनों को देखे अरसा हुआ


तुम तो सामने ही रहते हो

कोई नहीं होता सुनने वाला


किस से मन की बात कहूँ


तुम रहते हो तत्पर सदा


यहाँ लिख ही सब बात कहूँ


तुम सुनते ही नहीं समझते भी हो


ऐसा अपनापन कहाँ मिलेगा, कहो


मेरे दुख में रोते हो सुख में हँसते हो


मित्र तुम भले से लगते हो


अपनों से अधिक अपने लगते हो

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