इस दुनिया की रीत निराली, अपने पराए हो जाएँ
वक्त आने पर अपने भी साथ छोड़ के दूर हो जाएँ
स्वार्थ पर टिके हैं रिश्ते यहाँ मतलब के सब साथी
कोई मतलब न रहे तो भाई भी अजनबी बन जाएँ
हजार भलाई भी बेकार यदि एक बार मदद नहीं की
फूल जाते हैं मुँह लोगों के उपकार सारे हवा हो जाएँ
विपदा में बन जाते हैं तमाशाई खड़े तमाशा है देखें
पीड़ित चाहे जितना चिल्लाए पर बहरे ये बन जाएँ
‘व्याकुल’ भरोसा नहीं किसी का सब रंग बदलते हैं
वादा तो कर लेंगे ये पता नहीं वक्त पड़े पलट जाएँ
-विनोद शर्मा ‘व्याकुल’
वक्त आने पर अपने भी साथ छोड़ के दूर हो जाएँ
स्वार्थ पर टिके हैं रिश्ते यहाँ मतलब के सब साथी
कोई मतलब न रहे तो भाई भी अजनबी बन जाएँ
हजार भलाई भी बेकार यदि एक बार मदद नहीं की
फूल जाते हैं मुँह लोगों के उपकार सारे हवा हो जाएँ
विपदा में बन जाते हैं तमाशाई खड़े तमाशा है देखें
पीड़ित चाहे जितना चिल्लाए पर बहरे ये बन जाएँ
‘व्याकुल’ भरोसा नहीं किसी का सब रंग बदलते हैं
वादा तो कर लेंगे ये पता नहीं वक्त पड़े पलट जाएँ
-विनोद शर्मा ‘व्याकुल’
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