सोमवार, 4 मई 2015

इंसान की कदर कोई नहीं

पैसे के दौर में इंसान की कदर कोई नहीं

पैसेका रौब चले ईमान की बात कोई नहीं

 
पैसा बना भगवान चाहे जिस विध ये आए


है काला या सफेद इसकी परवाह कोई नहीं


पैसे के पीछे रिश्ते सब जमाने में खो गए


भाई बना दुश्मन रिश्ते का मान कोई नहीं

बिना पढ़ाई मिलें पैसे से नौकरियाँ और हो

उच्च शिक्षा में प्रवेश. चाहे प्रतिभा कोई नहीं

पैसे से बनें भाग्यविधाता, जनता के रखवाले

पैसा ही जिताए चुनाव वोट का मोल कोई नहीं

पैसे से इंसाफ मिले गरीब दर-दर ठोकर खाए

इंसाफ बिकता यहाँ कानून की कद्र कोई नहीं

-विनोद शर्मा ‘व्याकुल’

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