तय है बंटाधार - विनोद ‘व्याकुल’
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देश में मच रहा चारों ओर हाहाकार
हर मोर्चे पर विफल रही है सरकार
गरीब भूख से बिलबिला रहा है तो
किसान कर रहे आत्महत्या लगातार
महंगाई डायन सब को डस रही
चादर सबकी पैरों से छोटी पड़ रही
बाँट रहे हैं तबकों में समाज को
कर रहे दूर इंसान से इंसान को
केवल भरा जा रहा सेठों का भंडार
बिजली नहीं है पानी नहीं है,
कहीं भी सुरक्षित नारी नहीं है
अपराध चारों तरफ बढ़ रहे हैं
कहते हैं हम विकास कर रहे हैं
यही चलता रहा तो तय है बंटाधार
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देश में मच रहा चारों ओर हाहाकार
हर मोर्चे पर विफल रही है सरकार
गरीब भूख से बिलबिला रहा है तो
किसान कर रहे आत्महत्या लगातार
महंगाई डायन सब को डस रही
चादर सबकी पैरों से छोटी पड़ रही
बाँट रहे हैं तबकों में समाज को
कर रहे दूर इंसान से इंसान को
केवल भरा जा रहा सेठों का भंडार
बिजली नहीं है पानी नहीं है,
कहीं भी सुरक्षित नारी नहीं है
अपराध चारों तरफ बढ़ रहे हैं
कहते हैं हम विकास कर रहे हैं
यही चलता रहा तो तय है बंटाधार
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