चतुर्दिश है करुण रुदन, क्रंदन और चीत्कार
वसुधा की पीड़ा फूटी, मचा सब ओर हाहाकार
आश्रय जो सिर पर था, आन पड़ा भरभरा कर
अनगिनत मासूम पड़े, प्रस्तर खंडों में दब कर
बच गए विभीषिका से बैठे हुए हैं खुले मैदान में
दिवस तीसरा हो गया, अन्न जल के इंतजार में
प्रशासन तंत्र व्यस्त है, किसी विध बचाएँ जान
ये न हो विभीषिका से बचे भूख से त्याग दें प्राण
अगर भग्नावशेषों में दबे लोगों की रक्षा जरूरी है
तो रक्षितों के जीवन के लिए आहार भी जरूरी है
- विनोद शर्मा 'व्याकुल'
वसुधा की पीड़ा फूटी, मचा सब ओर हाहाकार
आश्रय जो सिर पर था, आन पड़ा भरभरा कर
अनगिनत मासूम पड़े, प्रस्तर खंडों में दब कर
बच गए विभीषिका से बैठे हुए हैं खुले मैदान में
दिवस तीसरा हो गया, अन्न जल के इंतजार में
प्रशासन तंत्र व्यस्त है, किसी विध बचाएँ जान
ये न हो विभीषिका से बचे भूख से त्याग दें प्राण
अगर भग्नावशेषों में दबे लोगों की रक्षा जरूरी है
तो रक्षितों के जीवन के लिए आहार भी जरूरी है
- विनोद शर्मा 'व्याकुल'
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