शनिवार, 5 जुलाई 2014

प्रेम का झोंका


सीली हवा के झोंके सा वो आया 
सराबोर तन-मन को कर गया
प्यार के जिस एहसास से मैं
अब तक रहा था अनजान
रोम रोम में मेरे वो प्यार का
एहसास यूँ भर कर चला गया
रोकना तो बहुत चाहा मगर
झोंके भी कहीं रुका करते हैं
महका कर मेरे जीवन को
खिला कर फूल मन-बगिया में
झोंके की तरह वो चला गया
रह गई हैं यादें बस उसकी
महक बसी है तन मन में
बरबस आज याद आ गया
रखना तो बहुत चाहा था
उन लम्हों को सदा के लिए
अपने पास समेट कर,
महकाने किसी और का जीवन
जाना था, झोंके सा चला गया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें