दो चार बार हम जो कभी हँस हँसा लिये
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिये
रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिये
चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँव में काँटे चुभा दिये
सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिये
जब हो सकी ना बात तो हमने यही किया
अपनी गजल के शेर कहीं गुनगुना लिये
अब भी किसी दराज में मिल जायेंगे तुम्हें
वो खत जो तुम्हें दे ना सके, लिख लिखा लिये
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें