मंगलवार, 10 अगस्त 2010

दो चार बार हम जो कभी हँस हँसा लिये

दो चार बार हम जो कभी हँस हँसा लिये
सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिये

रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर
अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिये

चाहा था एक फूल ने तड़पे उसी के पास
हमने खुशी के पाँव में काँटे चुभा दिये

सुख, जैसे बादलों में नहाती हों बिजलियाँ
दुख, बिजलियों की आग में बादल नहा लिये

जब हो सकी ना बात तो हमने यही किया
अपनी गजल के शेर कहीं गुनगुना लिये

अब भी किसी दराज में मिल जायेंगे तुम्हें
वो खत जो तुम्हें दे ना सके, लिख लिखा लिये

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