मंगलवार, 10 अगस्त 2010


इस शहर में आसमान छूती कई इमारतें हैं
हर इमारत के पीछे एक बस्ती है, जिसमें
जमीन पर बिछी पसरी झोंपड़ियाँ हैं
इमारत पूरी तरह वातानुकूलित है
तो, बस्ती प्रकृति से अनुकूलित है

बीसवें माले पर खन्नाजी रहते हैं
गोपाल नीचे बस्ती में रहता है
बस्ती में क्या, सड़क पर ही रहता है
झोंपड़ी तो औरतों के लिये छोटी पड़ती है
जैसे-तैसे माँ, बहन, बीवी लाज ढकती हैं

खन्नाजी और गोपाल में एक समानता है
दोनों का खाना एक ही होटल से आता है
खन्नाजी के लिये खाना पैक होकर आता है
होटलवालों द्वारा सड़क के किनारे
फेंका हुआ खाना गोपाल के हिस्से आता है

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