बुधवार, 31 जुलाई 2013

ईमानदारी को सजा

उत्तरप्रदेश में यमुना के किनारे चलने वाले अवैध खनन माफिया का कारोबार कम से कम एक हजार करोड़ प्रति वर्ष का है। इस एक हजार करोड़ में सब का हिस्सा है। इस मोटी मलाई को भला सत्ता में बैठे मंत्री और राजनेता कैसे छोड़ सकते हैं। उ.प्र. आईएएस एसोसिएशन के विऱोध के बावजूद सरकार निलंबन वापस न लेने पर अड़ी हुई है। इससे साबित होता है कि अवैध खनन माफिया की जड़ें कितनी गहरी हैं। मजे की बात यह है कि पूरे देश में मामला उजागर होने के बाद, आज भी अवैध खनन बदस्तूर जारी है। सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का। सपा सरकार के पास ब्रह्मास्त्र है सांप्रदायिक तनाव का। सार्वजनिक स्थान पर अवैध रूप से कुछ दीवारें खड़ी की जा रही थी जिसे ईमानदार आईएएस अधिकारी न रुकवा दिया। पहले तो सार्वजनिक स्थान पर किसी प्रकार का (धार्मिक स्थल के निर्माण सहित) निर्माण ही नहीं किया जा सकता। और फिर दो-चार दीवारों को मस्जिद का नाम दे कर सांप्रदायिक सद्भाव नष्ट होने का झूठा बहाना बनाया गया और एक होनहार, ईमानदार अधिकारी को निलंबित कर दिया गया। एक बार फिर से बुराई का रावण जीत गया और सच्चाई का राम अपनी जन्मभूमि में ही हार गया।

जब भी सत्ता का परिवर्तिन होता है, आनेवाली सरकार अपने वफादार चापलूसों को मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, पुलिस महानिदेशक, पुलिस कमिश्नर, जिलाधीश जैसे प्रमुख पदों पर तैनात करती है, भारी संख्या में अधिकारियों के स्थानांतरण किए जाते हैं। पार्टी चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, सपा हो या बसपा, द्रमुक हो या अन्नाद्रमुक। सारे देश में बिना किसी अपवाद के सरकारें आईएएस/आईपीएस अधिकारियों में से आसानी से अपना ईमान बेच सकने वाले लोगों को छाँट कर उन्हें ऊँचे पदों पर आसीन करती हैं। अब जो ईमानदार अधिकारी भ्रष्टाचार की वैतरणी के साथ बहने को तैयार नहीं होते, उनके साथ अशोक खेमका या दुर्गा शक्ति नागपाल या सत्यदेव दुबे जैसा व्यवहार किया जाता है। सत्ता में आते ही पार्टी उस प्रदेश को अपनी संपत्ति मान लेती है और उसके मंत्री और नेता कारिंदे बन जाते हैं। उसी सदियों पुराने सामंतशाही युग को दोहराया जाता है। भूमाफिया, निर्माण-माफिया, शराब माफिया, खनन-माफिया, रेत-माफिया आदि जैसे कितने ही माफिया सरकारों की मिली-भगत से लगभग हर राज्य में काम कर रहे हैं। फिर इन शक्तिशाली माफियाओं के विरुद्ध कार्यवाही करने वाले जनसेवक के विरुद्ध उसी प्रशासनिक सेवा के बिके हुए अधिकारी कार्रवाई करते हैं। दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन पर किसी राजनेता ने नहीं किसी आईएएस अधिकारी ने ही हस्ताक्षर किए हैं। अगर उस अधिकारी का ईमान या आत्मसम्मान जाग्रत होता तो वह ऐसे आदेश पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर सकता था। लेकिन इसका इंतजाम सरकारें पहले से करके रखती हैं। ऊँचे पदों पर ईमान या आत्मा या अंतरात्मा जैसी चीज रखने वाले अधिकारी को लगाया ही नहीं जाता।

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