बुधवार, 31 जुलाई 2013

गरीबी का सरकारी पैमाना

मेरी एक राय है और मैं समझता हूँ कि आप सब भी इससे सहमत होंगे- गरीबी के मानक तैयार करने में जो-जो लोग शामिल हैं, जैसे योजना आयोग और संबंधित मंत्रालय के सभी सदस्यों और अध्यक्षों को कम से कम एक महीने तक एक अलग स्थान पर रखा जाए और उनको अपना गुजारा करने के लिए 33 रुपए रोज दिए जाएँ। इसके अलावा उनको किसी प्रकार की कोई सुविधा, कोई फर्नीचर, कोई ऐशो-आराम की वस्तु न दी जाए। उन्हें अपने रहने की व्यवस्था भई खुद ही करनी हो। फिर देखें कौनसा माई का लाल एक महीने बाद जिंदा बचता है। यह सरकार किसको मूर्ख बनाना चाहती है। इन लोगों की चमड़ी मगरमच्छ से भी मोटी हो चुकी है। दुख की बात तदो यह है कि पाँच सितारा ऐशो-आराम में रहने वाले ये आँकड़ेबाज गरीबों की किस्मत का फैसला करते हैं। इनके बाप-दादाओं ने भी गरीबी नहीं देखी, ये क्या जानें गरीबी क्या होती है। एक शहरी व्यक्ति यदि 33 रुपए एक दिन में कमाता है तो वह गरीब नहीं है। इन सबको धक्के मार कर इनके महलों से बाहर निकालो और हाथ में 33 रुपए पकड़ा दो, कहदो कल फिर आना 33 रुपए लेने। इन अधम पापियों को यह एहसास कराना जरूरी है कि 33 रुपए में क्या आता है। यह ध्यान रखा जाए कि इनको कहीं से कोई सहायता नहीं मिले, सिर्फ 33 रुपए में दिन काटने की पाबंदी हो। चाहे सड़क पर रहो या फुटपाथ पर।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें