देखा है कि लोगों को जब किसी दार्शनिक बात का हवाला देना होता है तो कनफ्यूशस या सुकरात अन्य किसी विदेशी का संदर्भ देते हैं। मेरी सोच थोड़ी अलग है, मेरी नजरों में सबसे बड़ा दर्शनिक था ‘कबीर’ जिसने जीवन के हर पहलू को दो पंक्तियों के अपने दोहों में इतनी खूबी से व्यक्त किया है कि उनमें जीवन का लगभग सारा ज्ञान समा गया हैः-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
आज आम जनता को अपने पाँव की धूल समझने वाले सत्ताधीशों को लिए भी कबीर का एक दोहा पेश हैः
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच ।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
आज आम जनता को अपने पाँव की धूल समझने वाले सत्ताधीशों को लिए भी कबीर का एक दोहा पेश हैः
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच ।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥
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