बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

असली शत्रु कौन है? पाकिस्तान या चीन?


असली शत्रु कौन है? पाकिस्तान या चीन?


क्या पाकिस्तान की इतनी औक़ात या सामर्थ्य है कि वह भारत को आँखें दिखा सके? देश में पाकिस्तान के विरुद्ध भावनात्मक उफान आया हुआ है। लेकिन भावनाओं से काम नहीं चलता है। आइए विषय को गहराई से समझने का प्रयास करते हैं।
उड़ी में भारतीय सेना के ब्रिगेड मुख्यालय पर पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा हमला होता है।
हमारे पास इसका जवाब देने के लिए ये विकल्प उपलब्ध थे- 1. पाकिस्तान की आर्थिक नाकेबंदी करना. 2. भारत से पाकिस्तान में जाने वाले नदियों के जल को रोकना 3. पाक अधिकृत कश्मीर के क्षेत्र में आतंकियों के ठिकानों को चुन कर सर्जिकल स्ट्राइक (लक्षित आक्रमण) करना। हमने तीसरा विकल्प चुना, भारत पाकिस्तान पर खुला आक्रमण करने की स्थिति में नहीं है।
बास पच्चीस साल पहले तक पाकिस्तान ने इतनी शिद्दत से कश्मीर का राग नहीं अलापा था जितना पिछले कुछ सालों से वह कर रहा है। इसका मूल कारण है उसकी पीठ पर चीन का हाथ होना, चीन की ओर से अभयदान मिलना- कि भारत को अस्थिर करने, तंग करने के लिए वह जो चाहे कर सकता है। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का आक्रामक रुख इसलिए भी है, ताकि भारत उसके कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से को छुड़ाने के बारे में सोचे भी नहीं।


पाक-अधिकृत कश्मीर, बलोचिस्तान और बाल्टिस्तान से होकर चीन का महत्वाकांक्षी चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर गुजरता है। आज यूरोप, मध्यपूर्व या अफ्रीका से व्यापारिक माल का आवागमन भारत सहित कई आसियान देशों का चक्कर काट कर होता, जो चीन के लिए बहुत महंगा सिद्ध हो रहा है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडर पीरा हो जाने के बाद, चीन द्वारा विकसित किया जा रहा ग्वादर बंदरगाह अरब सागर में चीन के व्यापार का प्रमुख केंद्र होगा। यदि कश्मीर के भारतीय भाग पर कब्जा हो जाए चीन के लिए यह कॉरीडोर हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएगा। चीन का यह व्यापारिक हित ही सारी समस्या का मूल है। जब से चीन ने इस कॉरीडोर का निर्माण आरंभ किया है, वह पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध हर तरह की मदद दे रहा है। वर्ना पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तो इतनी जर्जर है कि वह इतने आतंकी संगठनों का खर्चा कहाँ से वहन करता? चीन जानता है कि भारत कभी भी एक साथ पाकिस्तान और चीन दोनों से युद्ध में उलझना नहीं चाहेगा।
पाकिस्तान कितना बहादुर है यह हम 1965 और 1971 के युद्धों में देख चुके हैं। 1971 में तो उसने अपने पूर्वी भाग को ही आसानी से हाथ से चले जाने दिया था। यही नहीं, सन 1950 में जब कश्मीर का मामला गर्मागरम था, उस समय भी पाकिस्तान ने कश्मीर के बदले पूर्वी पाकिस्तान को छोड़ने की पेशकश की थी।
हमें इसे अच्छी तरह से समझना होगा कि यह कोई कश्मीरियों के प्रति पाकिस्तान के प्रेम का मामला नहीं है। कश्मीर में पाकिस्तान से अधिक चीन की रुचि है। पर्दे के पीछे से चीन सारी चालें चल रहा है और आगे पाकिस्तान को कर रखा है।

      चीन के कशगार से पाकिस्तान के बलोचिस्तान में ईरान की सीमा के निकट अरब सागर में स्थित बंदरगाह ग्वादर तक के इस कॉरीडोर में हाइवे और तीव्रगति के रेल मार्गों का निर्माण चीन कर रहा है। आइए देखते हैं कि यह कॉरीडोर आखिर है क्या?
पाकिस्तान में उत्तर से दक्षिण तक चार भिन्न मार्गों पर एक्सप्रेस-वे, सभी मुख्य रेल-मार्गों का 160 किमीप्रघं की गति में उन्नयन। कराची से ग्वादर और हैदराबाद तक छह से आठ लेन का एक सुपर एक्सप्रेस-वे, पूरे पाकिस्तान में अनेक कोयला, ताप, सौर और पनबिजली के पॉवर प्लांट इस कॉरीडोर में शामिल हैं। एक अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे, स्कूलों, कॉलेजों, तकनीकी संस्थानों यहाँ तक कि लाहौर में मेट्रो लाइन सहित ग्वादर बंदरगाह का स्पूर्ण निर्माण चीन कर रहा है।
अब स्वाभाविक प्रश्न यह उठता है कि कश्मीर का इससे क्या संबंध है? चीन और पाकिस्तान को जोड़ने वाला कराकोरम मार्ग कश्मीर के गिलगित बाल्टिस्तान क्षेत्र से हो कर गुजरता है, जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा किया हुआ है। यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि जम्मू और कश्मीर के पूर्वी व उत्तरी भाग – शक्सगाम घाटी, (जिसे 1960 के दशक में पाकिस्तान ने चीन को भेंट कर दिया था)  और अक्साई चिन (जिस पर चीन ने तिब्बत पर अधिकार करते समय कब्जा कर लिया था) पर चीन का अवैध कब्जा है।
पाकिस्तान और चीन के बीच यह कॉरीडोर गिलगिट, बाल्टिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर से गुजरता है। कराकोरम मार्ग का निर्माण 1959 में आरंभ हुआ था जिसे 1979 में खोला गया था। आरंभ में पाकिस्तान ने ग्वादर तक चीन को पहुँच प्रदान करने से मना कर दिया था, लेकिन बाद में पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में मदद और सामरिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर-कर के चीन ने पाकिस्तान को इस कदर अपने चंगुल में ले लिया कि अब पाकिस्तान के पास यह मार्ग चीन को सौंप देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।
कशगार-ग्वादर कॉरीडोर का केवल व्यापारिक महत्व ही नहीं है, बल्कि उससे भी बड़ा कारण है खाड़ी के देशों के तेल मार्गों से निकटता। ग्वादर मस्कट से मात्र 400 किमी और होरमूज़ से 500 किमी। इसके अलावा अफ्रीका जिसके बहुत बड़े भाग में चीन ने खरबों डॉलर का निवेश कर रखा है और वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों को खरीदता है, वह भी निकट ही है। इससे अधिक लाभदायक स्थिति चीन के लिए और क्या हो सकती है?
चीन पाकिस्तान को अपने सस्ते माल के लिए एक बड़े बाजार के रूप में विकसित कर रहा है। चीन अपने सस्ते माल से पाकिस्तान और खाड़ी को पाट देगा और मोटा मुनाफा कमाएगा। चीन का नया बना मित्र श्रीलंका भी वहाँ से नजदीक ही है। अब अगर अमरीका/ब्रिटेन सिंगापुर के निकट मलक्का की खाड़ी को या भारत हिंदमहासागर को चीन के जहाजों के लिए अवरुद्ध कर भी देते हैं, तब भी चीन के पास ग्वादर बंदरगाह होगा। लेकिन यह सब तब होगा जब कराकोरम मार्ग जो पाक अधिकृत कश्मीर से हो कर जाता है निर्बाध रहे और यह तभी संभव है जब कश्मीर के उस भाग पर पाकिस्तान का कब्जा बना रहे।
चीन अभी तक पाकिस्तान में 50 अरब अमरीकी डॉलर लगा चुका है। इस प्रकार अब पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का 20 प्रतिशत चीनी है। देखा जाए तो पाकिस्तान अब चीन का 24वाँ प्रांत बन चुका है।
ऐसी स्थिति में अगर युद्ध हो जाए तो भारत का साथ कौन देगा? अमरीका की दोगली नीतियों से सारा विश्व परिचित है। अमरीका के साथ वर्तमान सरकार की बढ़ती नजदीकियों के कारण रूस अब पहले की तरह भारत का समर्थन नहीं करने वाला, वैसे भी पुतिन के लिए अपने घर में ही समस्याएँ कम नहीं हैं। अन्य यूरोपीय देशों को इस क्षेत्र की उथल-पुथल से कुछ लेना देना नहीं है।
अब एक उद्दंड पडौसी के रूप में पाकिस्तान की खुराफातों को सहते रहना भारत की नियति बन गई है, क्योंकि पाकिस्तान नहीं असल में शत्रु चीन है जो पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रख कर अपने हित साध रहा है। अगर भारत पाकिस्तान से कश्मीर का उसके कब्जे वाला हिस्सा वापस छीन लेता है तो चीन का सपना कभी पूरा नहीं होगा। कराकोरम मार्ग कभी पूरा नहीं बन सकेगा।
अब भारत को सोच समझ कर अपनी रणनीति तय करनी होगी जिससे पाकिस्तान की आड़ में छुपे हुए अपने प्रमुख शत्रु चीन का मुकाबला कर सके।

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