मंगलवार, 23 जून 2015

चंद अशआर

(1)
कभी मिलो पास बैठो कुछ बात करो
बेगानगी तुम्हारी अब सही जाती नहीं
(2)
हमारे बाद अंधेरा होगा महफिल में
बहुत चराग जलाओगे रोशनी के लिए
(3)
अब जब बात ठन ही गई है
देखें वो पहले आते हैं या मौत
(4)
उनका गुरूर और हमारी वफ़ा मुकाबिल है
जान भी जाए गम नहीं उल्फत के खेल में
(5)
कोशिशें तमाम नाकाम हो गई हैं
खयाल उनका दिल से जाता नहीं
(6)
हसरत-ए-दीदार में जान अटकी है
पका फल हूँ जाने कब टपक जाऊँ
(7)
गुजर तो जाएगी तेरे बगैर भी लेकिन
बहुत उदास बहुत बे-क़रार गुजरेगी
(8)
पैदा हुए और सीखा उड़ना जहाँ पे
लौटकर शजर पे बच्चे आते नहीं
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