सोमवार, 22 जून 2015

कुछ अशआर

(1)
न कोई तमन्ना की न कोई हसरत ही पाली
जिंदगी बस चलती रहे खुशी हो या बदहाली
(2)
रहनुमा हैं हमारे यही सोच कर
हर सितम उनका हम सह गए
(3)
रोटी पानी की बात कोई नहीं करता है
पेट सबके भरे हैं शायद ऐसा लगता है
(4)
गरीब की आवाज कहाँ कोई सुनता है
चमक दमक में सब खो गए लगता है
(5)
दुख इतने झेल रही बेचारी जनता है
सो गया निजाम शायद ऐसा लगता है

(6)
बहुत हुआ चलो अब एक काम करते हैं
मुद्दों की तरफ से आँख बंद कर लेते हैं

(7)
नमाज बख्शवाने चले थे, रोजे गले पड़ गए
जैसे-तैसे कुएं से निकले थे खाई में गिर गए

(8)
बदनसीबी हमारी हमें कहाँ ले आई है
पहरुआ ही हमारा निकला हरजाई है

(9)
कलप रहे हैं जिसने भी आस लगाई है
बहुत देर से उनको यह समझ आई है

(10)
हम लड़खड़ाते हैं मैखाने से निकलते हुए 
हुक्काम लड़खड़ाते हैं देश को चलाते हुए
बढ़ेे जा रहे हैं राज को तमाशा बनाते हुए
बहा रहे हैं पैसा ये खुद की शान बढ़ाते हुए

(11)
वक्त ऐसा आज ये आया है
सच पे पड़ा झूठ का साया है

(12)
गैर-मुद्दों पर सब हल्ला मचा रहे हैं
सीधे-सीधे अपराधियों को बचा रहे हैं



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