तेरी चाहत के नगमे और तराने लिखूँगा
रिफ़ाकत में जुदाई के अफ़साने लिखूँगा
मुझे मालूम है अपनी चाहत का अंजाम
जिद है कि ये जिंद नाम तुम्हारे लिखूँगा
माना के तू है फलक का रोशन माहताब
उल्फ़त मे तेरी दिनोरात अपने लिखूँगा
शिद्दत मेरी चाहत की तू जान ले आज
दीवान-ए-चाहत खूं से मैं अपने लिखूँगा
दरमियां हमारे फ़ासले इतने हो गए आज
ताउम्र नाकामी के अपनी फसाने लिखूँगा
‘व्याकुल’ है मन अश्कों के बहाने लिखूँगा
रिफ़ाकत में जुदाई के अफ़साने लिखूँगा
मुझे मालूम है अपनी चाहत का अंजाम
जिद है कि ये जिंद नाम तुम्हारे लिखूँगा
माना के तू है फलक का रोशन माहताब
उल्फ़त मे तेरी दिनोरात अपने लिखूँगा
शिद्दत मेरी चाहत की तू जान ले आज
दीवान-ए-चाहत खूं से मैं अपने लिखूँगा
दरमियां हमारे फ़ासले इतने हो गए आज
ताउम्र नाकामी के अपनी फसाने लिखूँगा
बेइंतिहा चाहा है तुझे इसी बहाने लिखूँगा
‘व्याकुल’ है मन अश्कों के बहाने लिखूँगा
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