रविवार, 26 अक्तूबर 2014

अश्कों के बहाने

तेरी चाहत के नगमे और तराने लिखूँगा

रिफ़ाकत में जुदाई के अफ़साने लिखूँगा




मुझे मालूम है अपनी चाहत का अंजाम

जिद है कि ये जिंद नाम तुम्हारे लिखूँगा


माना के तू है फलक का रोशन माहताब 

उल्फ़त मे तेरी दिनोरात अपने लिखूँगा


शिद्दत मेरी चाहत की तू जान ले आज

दीवान-ए-चाहत खूं से मैं अपने लिखूँगा



दरमियां हमारे फ़ासले इतने हो गए आज

ताउम्र नाकामी के अपनी फसाने लिखूँगा



बेइंतिहा चाहा है तुझे इसी बहाने लिखूँगा


‘व्याकुल’ है मन अश्कों के बहाने लिखूँगा

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