बुधवार, 7 अगस्त 2013

क्या हम वाकई स्वतंत्र हैं?

उत्तरप्रदेश में 43 आईपीएस अफसर ऐसे हैं जिनको 40 से अधिक बार स्थानांतरित किया गया है। अपने राजनीतिक आकाओं के मनमाफिक काम नहीं करने वालों का यही अंजाम होता है। आपको बहादुरी और कभी-कभी कायरता के लिए ईनाम मिल सकता है, चापलूसी के लिए इनाम मिल सकता है, काले धंधों में भागीदार होने के लिए इनाम मिल सकता है, लेकिन ईमानदारी के लिए कभी इनाम नहीं मिलता, केवल सजा मिलती है। फिर लगभग हर क्षेत्र में ये 5-7 प्रतिशत लोग क्या सिरफिरे होते हैं, जो ईमानदारी का दामन मरते दम तक नहीं छोड़ते। भयंकर यंत्रणाओं का सामना करके भी ये अपनी ईमानदारी पर डटे रहते हैं। या आप कह सकते हैं कि ये अलग ही मिट्टी के बने होते हैं। लेकिन उन्हीं क्षेत्रों में शेष 95 प्रतिशत रीढ़विहीन, प्रवाह के साथ बह जाने वाले, आकाओं को हर तरह से खुश रखने वाले, खुद खाने वाले और ऊपर वालों को खिलाने वाले, हमेशा खुश रहते हैं, समय-समय पर इनाम पाते हैं। सवाल यह उठता है कि अंग्रेजों के जाने से इस देश के आम नागरिक को क्या मिला? अंग्रेजों में कम से कम ईमान तो था, अब जो देशी अंग्रेज सत्ता में हैं वे तो अपना धर्म ईमान पहले ही बेच कर कुर्सी पर बैठते हैं। 15 अगस्त 1947 को केवल सत्ता परिवर्तन हुआ था। देश आजाद नहीं हुआ था। सत्ता गोरे अंग्रेजों के हाथों से निकल कर काले अंग्रेजों के हाथों में आ गई थी। जनता तब भी त्रस्त थी आज भी त्रस्त है।

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