प्यार अपना एक अफसाना - विनोद शर्मा ‘व्याकुल’
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मिलन हमारा एक सपना बनके रह गया
जो हमारे बीच था फसाना बनके रह गया
कुसूर किसी का भी न था न थी कोई वजह
कल तक अपना था बेगाना बन के रह गया
नाकामी-ए-इशक ने भी क्या गुल खिलाया
नजरोंका सबकी मैं निशाना बन के रह गया
लोग कहानियों को जिंदगी में उतार लेते हैं
प्यार अपना एक अफसाना बन के रह गया
बदकिस्मती हमारी इस मोड़ पे ले आई है
कि "व्याकुल" एक दीवाना बन के रह गया
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बदकिस्मती हमारी इस मोड़ पे ले आई है
कि "व्याकुल" एक दीवाना बन के रह गया
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